BA Hindi Litt 2nd Semester Notes 2 अंधा युग – नाट्क
अंधा युग – नाट्क
5 Marks question and Answers
1. अश्वत्थामा का चरित्र चित्रण कीजिए ?
अश्वत्थामा द्रोणाचार्य का एक मात्र पुत्र था / वह कौरवराज दुर्योधन का विस्वासपात्र
था / अंधा युग नाट्क मे वह एक भग्न योध्दा के रूप मेँ उपस्थित होता है /इस टूटन
का योँ देखते है जब वह अपने धनुष को मरोडकर फेँक देता है और जंगल मेँ भाग
जाता है / वहाँ अपने जीवन की निरर्थकता को पह्चान कर सुधारने की दिश मेँ एक
प्रतिशोधी हो कर जीने का निर्णय लेता है / वह भयंकर नर संहार करता है , पाण्डवोँ
के शिविर मेँ आग लगा देता है / वह ब्रह्मास्त्र का प्रयोक्ता है युध्द मेँ अर्जुन पर
ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करता है तब अर्जुन के ब्रह्मास्त्र की ट्क्कर से पूर्ण प्रलय को
व्यास जी के व्दारा जान कर इसे लौटा ने का आग्रह स्वीकारता है / लेकिन
अश्वत्थामा को ब्रह्मास्त्र को लौटाने की विद्या नहीँ आती इसलिए वह उसे उतरा के
गर्भ की ओर मोड देता है / इस पर व्यास जी उसे ‘पशु’ की संकेत देते है और कृष्ण
उसे जख़्मी रहकर जीवित रहने का शाप देते है / फिर भी अश्वत्थामा उनकी अर्थात
कृष्ण की प्रशँसा ही करता है /
2. कृष्ण का चरित्र चित्रण कीजिए ?
धर्मवीर भारती के अंधायुग मेँ सर्वाधिक महत्वपूर्ण पात्र श्री कृष्णा का है /क्योँ कि
नाट्क की सारी कथा का संचालक वे ही है /वे ही इस गीत – नाट्य के नायक है /उन
का चरित्र वैविध्यपूर्ण है /यद्यपि उन्हे कुछ लोग कूटबुध्दि, प्रभुता का दुरुपयोगी , शत्रु
आदि कहा है लेकिन वे हमरे सम्मुख़ शक्तिमान , गम्भीर नीतिज्न , कर्ममार्गी
,मर्यादा के रक्षक ,क्षमावान, दयालु ,मानवता के रक्षक के रूप मेँ उपस्थित होते है /
कृष्ण के बडे भाई बलराम यद्यपि उन्हे कूटबुध्दि और मर्यादहीन कहते है क्योँ की
उन्हे ने भीम को अधर्म -वार करने की प्रेरणा दी जुस से दुर्योदन परास्त हुआ /
गांधारी , अश्वत्थामा ने उन्हे अन्यायी इस कारण कहा है कि वे पाण्ड्वोँ के साथ
अकेले अश्वत्थामा को मारने चाह्ते थे/ इन सभी आरोपोँ के बावजूद भी कृष्ण का
चरित्र उदात्त है/ श्री कृष्ण नीतिज्न होने के साथ साथ कर्ममार्ग भी है / उंके दर्शन मेँ
जीवन मूल्य है – आचरण की सत्यता है / इस प्रकार अंधा युग के कृष्ण एक
आधुनिक परिप्रेक्ष्य मेँ अवतरित हुए है / वे प्रभु हो या न हो , परास्पर ब्रह्म हो या
न हो परंतु एक नीतिज्न , चिंतक और इतिहास पुरुष अवश्य है जो इतिहास की गति
और दशा को बदलने मे समर्थ है /
3. गाँधारी का चरित्र चित्रण कीजिए ?
गाँधारी राजा धृतराष्ट्र की पत्नी और सौ कौरवोँ की ममतामयी माँ है / महाभारत के
महाविनाश क उत्तरदायी गाँधारी का स्वार्थ है /वह कितनी अभागी माँ है जो अपने
पुत्रोँ को एक – एक करके मरते देख कर भी किसी से कुछ नही कह सकी / वह एक
पतिपारयणा साध्वी स्त्री थी और पति के अंधत्व के प्रति अपनी सहानुभूति के कारण
उस ने अपनी आँखोँ पर भी पट्टियाँ बाँध ली थी / गाँधारी का व्यक्तित्व निर्मम एवँ
आक्रामक है / अश्वत्थामा ने पाण्डवोँ के घुस कर सोये हुए धृष्ट्द्युम्न को सय्या से
नीचे उतार कर अपने घुट्नोँ के बीच दबाते हुए जीवित अवस्था मे ही उसकी दोनोँ
आँखोँ निकल ली तो गाँधारी अश्वत्थामा से योँ निर्मम अटटहास कर उठती है /
अंधा कर दिया उस को पहले ही
कितना दयालु है अश्वत्थामा
इस प्रकार गाँधारी के चरित्र मेँ सर्वत्र मौलिकता के दर्शन होते हैँ / उसके पास मात्र
अंधी ममता नहीँ है बल्कि तर्क और प्रज्ना भी है , जिंका प्रदर्शन वह कई स्थलोँ पर
करती है /
4. अंधा युग नाट्क का उध्देश्य क्या है /
a. धर्मवीर भारती नये युग के रचनाधर्मी साहित्यकार है / उन की रचनाओँ मेँ
युग के अनुरूप सत्य उदघाटित किया है / आप ने ‘अंधा युग’ मे पौराणिक
प्रसंगोँ को उठाया है परंतु उनकी आंखोँ पर नया चश्मा है इसलिए प्रचीन
प्रसंगोँ को नवीन परिवेश मेँ ढालकर उन्होँ ने युगीन भावबोध को समयोजित
कर दिया है / भारती जी की इस रचना का मूल उध्देश्य मन बहलाने वाली
आदर्शवादिता का ढोल पीट्ना या कोरी नग्न यथार्थता का रस लेकर वर्णन
करना नही बल्ही मंचन और अभिनय के माध्यम से मनुष्यु की आंतरिक
खोज करना है /युध्द और इस की विभीषिका भरी प्रतिक्रियाएँ ऐसी ज्वलंत
समस्याएँ है जो मानव को अंधपशुत्व त्क ले जाती हैँ / इस प्रकार की
समस्यओम सो अंधी संस्कृति को सचेत करना भारती जी की इस रचना का
मुख्यु उध्देश्य है /
10 Marks question and Answers
1. धर्मवीर भारती का परिचय दीजिए ?
धर्मवीर भारती का जन्म 25 दिसम्बर ,1926 ई को उत्तर प्रदेश के प्रयाग(इलाहाबाद)
नगर मेँ हुआ था / आप के पिता का नाम चिरंजीलाल वर्मा तथा माता का नाम
श्रीमती चंदादेवी था / आप की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुयी बाद मे इलाहाबाद मेँ
हुई थी / स्कूल की पढाई करते -करते राष्ट्रीय चेतना से प्रभावित हो कर अपने नाम
के साथ भारतीय लिखना शुरू कर दिया बाद मेँ या लुप्त हो कर भारती नाम
उपनाम से प्रतिष्ठ्त हुए / अचानक पिता की मृत्यु के बाद मामा की सहयोग से सन
1942 मेँ इन्टरमीडियट पास होकर प्रयाग विश्वविद्यालय मेँ प्रवेश लिया/ 1947 मेँ
एम ए हिंदी प्रथम श्रेणी मेँ पास होकर डा. धीरेंद्र वर्मा के निदेशन मेँ सिध्द
साहित्य पर शोध कार्य सम्पन्न किया / सन 1950 भारती जी की नियुक्ति प्रयाग
विश्व विद्यालय मेँ हिंदी प्रध्यापक के रूप मेँ हुई / सन 1960 मेँ मेँ बम्बई मेँ
टाइम्स आफ इण्डिया मेँ धर्मयुग पत्रिका का संपाद्क हो गये / सन 1972 मेँ भारत
सरकार ने पद्म्श्री से सम्मानित किया / सन 1988 मेँ संगीत नाटक अकादमी का
पुरस्कार अंधा युग केलिए मिला था / 1990 मेँ उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भारत
भारती पुरस्कार /1997 महराष्ट्र सरकार ने धर्मवीर भारती महाराष्ट्र सारस्वत सम्मान
रखा था /
भारती जी एक मानवतावादी साहित्यकार थे / आप के संदर्भ मेँ निर्मल वर्मा ने लिखा
है कि – “भारती हमारे समय के उन दुर्बल , असाधारण लेखकोँ मेँ से थे , जिंन्होँ ने
अपने सर्वतोन्मुखी प्रतिभा से साहित्य की हर विधा को एक नया मोड दिया था /
आप की मृत्यु 4 सितम्बर ,1997 मेँ हुआ था /
कविता संग्रह : 1. ठंडा लोहा (1952) 2. सात गीत वर्ष (1959) 3.
सपना अभी भी (1993) 4. अंधा युग (1954)
कहानी संग्रह :1. मुद्रोँ का गाँव (1946) 2. स्वर्ग और पृथ्वी (1949) 3.चाँद
और टूटे हुए लोग (1955) 5. बँद गली की आख़री मकान (1969)
उपन्यास साहित्य : 1. गुहानोँ की देवता (1949)2. सूरज का सातवाँ घोडा
(1952)
एकाँकी सँग्राह : नदी प्यासी थी (1954)
निबंध : ठेले पर हिमालय (1958) 2. पश्यँती (1969) 3. कहनी अन कहनी
(1970) 4. शब्दिता (1997)
इस के साथ – साथ सम्सरण , यात्रा वर्णन , आलोचना , अनुवाद और पत्र –
पत्रिकाएँ भी लिखा था /
2. नाट्क के तत्वोँ के आधार पर अंधा युग नाट्क की समीक्षा कीजिए ?
भारतीय एवँ पाश्चात्य विद्वानोँ ने भी नाट्क की समीक्षा के सात प्रमुखत : सात
तत्व स्वीकार किया है , जिन के आधार पर गीत - नाट्य अंधायुग की समीक्षा
प्रस्तुत है –
1. कथानक तथा कथावस्तु :‘अंधा युग ‘ प्रयोगवादी शैली मेँ लिखा गया प्रमुख
गीति- नाट्य है / संस्कृत आचार्योँ ने नाट्क की कथा वस्तु का प्रख्यात होने
का आवश्य्क माना है /अन्धा युग की कथा वस्तु ख़्यात है / इस के बारे मेँ
स्वयँ भारती जी का कथन है कि “ इस दृश्य काव्य मेँ जिन समस्याओँ का
उठाया गया है , उन के सफल निर्वाह के लिए महाभारत के उत्तरार्द की
घटनाओँ का आश्राय ग्रहण किया है इस मे कुछ तत्व उपाद्य है किंतु मूल
क्थानक प्रख्यात ऐतिहासिक अथवा पौराणिक है /यह तथ्य भी सम्म्मत है कि
कौरव पति धृतराष्ट् अंधे थे और गाँधारी ने दृष्टि रखते हुए भी अपनी आँखोँ
पर आजीवन पट्टी चढाए रखी थी/ संजय को व्यास जी दिव्यदृष्टि प्रदान की
थी तथा द्रोणाचार्य युधुष्टिर के अर्ध्द्सत्य के कारण मारे गये थे / इस प्रकार
अंधा युग नाट्क मेँ कथानक के सभी तत्व क निर्वाह किया गया है /
2. पात्र एव चरित्र चित्रण : भारतीय एवँ पाश्चात्य नाट्य परम्परा मेँ पात्र और
उनके चरित्र का बहुत मह्त्व माना गया है / इन के माध्यम से ही कथावस्तु
गतिशील होती है / नाट्य के अन्य तत्वोँ के अनुरूप ही चरित्र के अनेक रूप
नाट्य साहित्य मेँ देखने को मिलते है / अंधा युग रंगमंच को ध्यान मे रख
कर लिखा गया था , इसलिए इसके चरित्र बडे प्रभावशाली है / इस मेँ कुल
सोलह पात्र है , जिन मेँ पाँच प्रमुख हैँ – अश्वत्थामा,कृष्ण , वृध्द याचक और
दो प्रहरी / शेष पात्र है – गाँधारी, विदुर , धृतराष्ट्र , युदिष्ठर ,कृतवर्मा ,
कृपाचार्य , संजय , युयुत्सु , , भिखारी ,व्यास और बलराम / यद्यपि पात्र
प्रतीकात्मक है तथापि मानवीय धरातल पर इन का चरित्र -चित्रण सम्भव है /
इस प्रकार अंधा युग के सभी पात्र आवश्यकता के अनुकूल तो है ही , अपने
नाट्कीय क्रियाक्लापोँ से दर्शकोँ को आकर्षित भी किया रखते हैँ /
3. कथोपकथन या संवाद योजना : नाट्य शिल्प के अंतर्गत संवाद - योजना को
महत्व स्थान दिया गया है / संवादोँ के द्वारा ही कथानक और चरित्र की गति
पाते है / अंधा युग नाट्क के संवाद सरल , संक्षिप्त और पात्र तथा अवसर के
अनुकूल हैँ / यथा –
धृतराष्ट्र : विदुर !
जीवन मेँ प्रथम बार
आज मुझे आशँका व्यापी है /
विदुर : आशँका ?
आप को जो व्यापी है आज
वह वर्षोँ पहले हिला गयी थी सब को /
इस प्रकार इस के संवाद भावाभिव्यक्ति मेँ सक्षम और व्यजक बन पडे है /
4. देश काल वातावरण :नाट्क मेँ वास्तविकता, सजीवताऔर गरिमा प्रदान
करनेवाले अनुकूल वातावरण भी अत्यँत मह्त्वपूर्ण तत्व है / देशकाल
परिस्थितियाँ, परंपरा ,जीवन पध्द्तियाँ ,वेशभूषा आदि का चित्रण नाट्क मेँ
जितना होगा उतना ही श्रेष्ट नाट्क होगी / अंधा युग नाट्क मेँ महाभारत के
अटटारहवेँ दिन की संध्या से लेकर प्रभास तीर्थ मेम कृष्ण की मृत्यु के क्षण
तक के कथा – काल को उदृत किया गया है / नि:संदेह यह कथा काल
अल्पकालीन है और घटनाएँ आदि भी पूर्णत्या महाभारतसम्म्त हैँ /
5. भाषा - शैली : दृश्य-काव्य मेँ भाषा विन्यास की प्रक्रिया जटिल होती है /
भाषा को ही ‘काव्यत्व’ और ‘नाट्यत्व’ दोनोँ की भूमिका निभानी पड्ती है /
ऐसी स्थिति मेँ भाषा का झुकाव नाट्क की ओर अधिक होती है /अंधा युग मेँ
तत्सम शब्दावली के साथ उर्दू शब्दोँ का प्रयोग भी पर्याप्त मात्रा मेँ हुआ है /
जहाँ ‘भू लुण्ठित कौरव कबंधोँ से ‘ जैसे वाक्य मेँ तत्समता के प्रति आग्रह
दिखाता है , वही ‘जख़्म है बदन पर मेरे ‘ की वाक्या संरचना उर्दू प्रदान है /
6. रंग मंचीयता या अभिनेयता : किसी भी नाटक के लिए रंगमंचीयता या
अभिनेयता केलिए एक प्रबल चुनौती होती है /किसी भी रंग्मंच का यह आदि
धर्म होता है कि वह दर्शक और अभिनेता के मध्य सजायतीयता का भावोदय
करे / अंधायुग नाट्क मेँ वस्तु-न्यास को नाट्कीय रूप देने मेँ पौराणिक और
आधुनिक विधियोँ का प्रयोग विचारोँ ,भावोँ तथा अनुभूतियोँ के स्तर पर
समान रूप से किया गया है / अभिनय और मंचन की दृष्टि को ध्यान मे रख
कर भारती जी ने ‘प्रख़्यात ’ और ‘उपाद्य’ दोनोँ का सामनजस्य संकलन त्रय
परिधि मेँ किया है/ उन्होँ ने वस्तु को नाट्कीय उत्कर्ष दे ने केलिए संस्कृत
नाट्य ,भारतीय लोकनाट्य एवँ ग्रीक नाटक विधि का मिला – जुला प्रयोग
किया है /
7. उध्देश्य : धर्मवीर भारती नये युग के रचनाधर्मी साहित्यकार है / उन की रचनाओँ मेँ
युग के अनुरूप सत्य उदघाटित किया है / आप ने ‘अंधा युग’ मे पौराणिक प्रसंगोँ
को उठाया है परंतु उनकी आंखोँ पर नया चश्मा है इसलिए प्रचीन प्रसंगोँ को
नवीन परिवेश मेँ ढालकर उन्होँ ने युगीन भावबोध को समयोजित कर दिया है
/ भारती जी की इस रचना का मूल उध्देश्य मन बहलाने वाली आदर्शवादिता
का ढोल पीट्ना या कोरी नग्न यथार्थता का रस लेकर वर्णन करना नही बल्ही
मंचन और अभिनय के माध्यम से मनुष्यु की आंतरिक खोज करना है /युध्द
और इस की विभीषिका भरी प्रतिक्रियाएँ ऐसी ज्वलंत समस्याएँ है जो मानव
को अंधपशुत्व त्क ले जाती हैँ / इस प्रकार की समस्यओम सो अंधी संस्कृति
को सचेत करना भारती जी की इस रचना का मुख्यु उध्देश्य है /
3. अंधा युग नाट्क मेँ प्रस्तुत आधुनिक समस्याएँ क्या - क्या है ?
अंधा युग सन 1954 मेँ रचा गया था आज से लग – भग आधी शताब्दी बीत चुकी थी ,
फिर भी इसे पढ ने से आज की आधुनिक समस्याओँ के भी संकेत मिलते हैँ / साहित्य
सृजन की समस्या , युध्दोँ की समस्या , शासन संचालन की समस्या ,तटस्तता की समस्या
,भाई – भतीजावाद की समस्या तथा जनता की दास -वृत्ती की समस्या कुछ एसी समस्याएँ
हैँ , जिन की ओर अंधा युग हमारी ध्यान आकृष्ट करता है /
1. साहित्य सृजन की समस्या :साहित्य समाज का दर्पण है /पश्चिम मेँ द्वतीय महा
युध्द के उपरांत जो साहित्य आया , वह सँशय ग्रस्त ,चिंता ग्रस्त और मानव मन की
अंतरात्मा को ध्वँस करने वाला ही सिध्द हुआ / इस के प्रेरणा – स्त्रोत मार्क्स ,नीत्शे
, डिकैंडेर आदि उन्होने तत्कालीन परिस्थितियोँ के अनुरूप मानव मूल्योँ के अवहेलन
करने से न चूके /उन्होँने सत्य और मर्यादा की परवाह नही की / पश्चिम मेँ मानव
मूल्योँ के सूर्योदय नहीँ हो सका , पूर्व लेकिन पूर्व मेँ य कार्य सम्पन्न करना है / यह
नयी मर्यादा है मानवता की खोज है / अंधा युग नाट्क मे प्रभु को मानवीय मूल्योँ के
प्रतीक के रूप मेँ प्रतष्टित करके यही समस्या का समाधी की गयी है / यहँ स्वयँ प्रभु
के शब्दोँ मेँ मानव मूल्य ही बोल रहा है –
मेरा दायित्व वह स्थित रहेगा
हर मानव मन के उस वृत्त मेँ /
यह मानव मूल्य वर्तमान काल के साहित्यकार को ही प्रतिष्टित करता है /
2. युध्दोँ की समस्या : आधुनिक विश्व मेँ सावन – भेदोँ की उमडती – घुमड्ती सोच के
कारण सर्वत्र युध्द का संकट चाया हुआ है /परिणाम स्वरूप शक्तिशाली विज्नान ने
स्वार्थी मानव के हाथोँ मे अनेक विद्वँशकारी अस्त्र -शस्त्र तथा बम आदी थमा दिए हैँ
जिस से मानव क खतरा बना हुआ है ब्रह्मास्त्र -रूपी एटम बम चोडने वाले नर पशु
को व्यास के शब्दोँ मे मानो लेखक ही चेतावनी दे रहा है –
नराधम
ये दोनोँ ब्रह्मास्त्र अभी नभ मेँ ट्करायेँगे
सूरज बुझ जायेगा
धारा बंजर हो जायेगी /
युध्द का कुपरिणम सँहार ही सँहार है जो मानवता केलिए बहुत बडी चुनौती है /
3. शासन संचालन की समस्या : आज विश्व के कोने कोने से सत्ता के प्रति विरोध के
समाचार मिलते रहते है / कभी छात्रोँ का आँदोलन , कभी मजदूरोँ का – कहीँ जनता
सुखी नही है /पूँजीवादी देशोँ मेँ यदी शोषण है तो साम्यवादी देशोँ मेँ विचार – स्वतंत्र्य
का अपहरण /पिछिले शासन को ही जनता अच्छा मानती है – नये को रोते है / यही
विश्य अंधायुग नाट्क मेँ योँ देखते है – शासक की दशा भी पुष्ट नहीँ है / उस की
यातना की अभिव्यँजना युधिश्टर के इस कथन मेँ हुई है
ऐसे भयानक महायुध्द- को
अर्ध्द्सत्य ,रक्तपात, हिँसा से जीत कर
अपने को बिलकुल हारा हुआ अनुभव करना
‘’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’’
यह माना है कि उस के पीछे अंधेपन की
अटल परंपरा है /
4. भाई – भतीजावाद की समस्या : भाई –भतीजावाद भी आज की एक खतरनाक
समस्या , जिस का संकेत धृतराष्ट्र के इस कथन से मिलता है –
पर वह संसार स्वत: मेरे अंधेपन से उपजा था
मैं ने अपने ही वैयक्तिक संवेदन से जो जाना था
केवल उतना ही था मेरे लिए वस्तु जागत /
5. तटस्तता की समस्या : तट्स्थ व्यक्ति दोनोँ पक्षोँ मेँ किसी पर भी दबाव नही डाल
सकता / उस का व्यक्तित्व नपुंसक व्यक्तित्व है ,जैसा कि संजय के शब्दोँ से प्रतीत
है –
मै दो बडे पहियोँ के बीच लगा हुआ हूँ
एक छोटा निरर्थक शोभा – चक्र हूँ
जो बडे पहियोँ से के साथ घूमता है ………..
इस प्रकार आज के युग की प्रमुख समस्याओँ का संकेत देते हुए लेखक हमेँ संदेश
देता है कि हम उनका समाधान ढूढेँ और उन के कुप्रभाव से बचे /
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