BA Hindi Litt 2nd Semester Notes आषाढ का एक दिन

                                             आषाढ का एक दिन

1. आषाढ का एक दिन नाट्क का कथा वस्तु या कथा सार लिखिए ?

आषाढ का एक दिन ‘मोह्न राकेश’ जी का प्रसिध्द नाट्क है जिस के नायक महान कवि कालिदास है /यह

कथा ऐतिहासिक तथा वर्तमान समाज एवँ जीवन स्थितियोँ से संबंदित हैँ / तीन खंडोँ मे ‘आषाढ का एक

दिन नाटक की रचना की गयी है / प्रधम अंक के प्रारंभ मेँ वर्ष मेँ भीगकर आई मल्लिका और उनकी माँ

अंभिका का प्रवेश होते हैँ / मल्लिका ने कालिदास के साथ आषाढ की पहली बरसात मेँ भीगाने का आनंद

मेँ है / लेकिन उनकी मँ अंबिका लोकलाज की भय के कारण शादी से पहले कालिदास और मल्लिका के यह

अनुचित व्यवहार से नाराज है / इतने मेँ कालिदास भी आते है उन्हे राज पुरुष द्न्तुल के बाण से आह्त

हरिण के प्राण - रक्षा की चिता मेँ है / इस विषय पर दोनोँ के बीच वाद - विवाद होते है / लेकिन तुरंत ही

दुंतल कालिदास की विव्दत्ता को पहूँचान कर माफी माँगते हैँ और सम्राट चंद्रगुप्त के आदेश पर कालिदास

को राजकीय सम्मान का अधिकारी होने की सूचना देती है / लेकिन कालिदास अपने सहज स्वभाव के

कारण नकारते है पर उन के संरक्षक मातुल और मल्लिका की प्रेरणा से उज्जयनी मेँ राजकीय सम्मानका

अधिकारी होता है / क्योँ की मल्लिका कालिदास से इतना विस्वास करती है कि वे उज्जयिनी मेँ उस की

कीर्ति दूर - दूर तक फैले भले ही उस केलिए वियोग भी सही मानती है /

दूसरा अंक कालिदास के जाने का कुछ वर्षो बाद का है / फिर भी मल्लिका कालिदास से प्यार करती है

राजधानी से आने – जाने वालोँ के माद्यम से वह कालिदास की रचनाओँ को पढती रही है / उसे यह

संतोश भी है कि उस के स्नेह और आग्रह के कारण ही कालिदास राजधानी चले गये , अत : वह उन

की उपल्बि मेँ कही स्वयं भी भागीदार हैँ / निक्षेप से बात - चीत से पता चला कि अब वह पहले वाले

कालिदास नहीँ रहे हैँ / वहाँ के वातावरण के अनुरूप अब वे सुरा और सुंदरी मेँ मग्न रहने लगे हैँ ,

गुप्त साम्राज्य की विदूषी राजकन्या से उन्होँ ने विवाह कर लिया है , अ‍ब काश्मीर का शासन भार भी वे

सँबालने वाले है इसी यात्रा के बीच इस ग्राम मेँ भी रुकेँगे , उन का नया नाम अब ‘मातृगुप्त’ है, ऋतु

सन्हार के बाद वे और भी अनेक रचना कर चुके है , सारा गाँव आज उन के स्वागत की तय्यारी कर

रहा है / कालिदास की पत्नी ,राजपुत्री प्रियंगमंजरी के आगमन की तयारी मेँ राजकर्मचारी मल्लिका के

घर की राजकुमारी के गौरव के अनुरूप सुविधाजनक होने का प्रयत्न की / फिर मातुल के साथ

प्रियंगुमंजरी का आगमन होता है , वह जानती है कि मल्लिका कालिदास की प्रेयसी है और कालिदास के

मन मेँ उस के लिए अथाह स्नेह और सम्मान है / स्त्री सुलभ ईर्षा से इस प्रदेश मे आति है उसे आश्चर्य

होता है कि राजधानी से इतनी दूर होने पर भी मल्लिका ने कालिदास की सभी रचनाएँ प्राप्तकर पढ ली

है / उन दोनोँ का पूर्व परिचय ,आपत्ती जनक समज कर वह मल्लिका का शादी किसी राजकर्मचारी से

करना चाह्ती है लेकिन मल्लिका तिरस्कार करती है / तब प्रियंगुमंजरी बहुत क्रोध से वहाँ से लौटती है /


तीसरे अंक मेँ कुछ और वर्षो के बाद की घटनाएँ है / इस बार अंबिका दिख़ाई नही देती / मल्लिका

दुख़मय जीवन जी ने लगे / इस बार फिर आषाढ का मूसलाधार वर्षा का दिन है / लेकिन आनंद के बदले

मल्लिका दुख का शिखार है / मातुल जिस वैभव और सत्ता – सुख़ की लालसा से वह उज्ज्यनी गया था

वह तो पूरी होगयी किंतु मातुल का मोह भंग हुआ है / वह सूचना देता है कि कालिदास ने काश्मीर का

शासन भार त्याग कर सन्यास ग्रहण कर लिया है / कालिदास इस अंक मेँ बताता है कि यहाँ से जाने के

बाद वह सुख़- सुविधा ,आमोद – प्रमोद भले ही रहा लेकिन कभी भी अपने परिवेश और मल्लिका से अलग

नहीँ हुआ /अत: वह शासक मात्रुगुप्त के कलेवर से सन्यास ग्रहण कर पुन: कालिदास के कलेवर मेँ लौट

आया है /मल्लिका के साथ अपने जीवन का पुन: प्रारम्भ करना चाह्ता था / लेकिन घर के अंदर से बच्चे

रोने की आवाज और अंदर से विलोम का आगमन से वस्तुस्थिति का बोध होता है /तब कालिदास वहाँ से

चला जाता है और यही नाटक समाप्त होजाता है /


कालिदास का चरित्रण कीजिए :


आषाढ का एक दिन का कालिदास घोर आत्मकामी , अहंनिष्ठा और स्वार्थी व्यक्ति है / वह मल्लिका जैसी

निष्पाप किशोरी के जीवन को नष्ट करने का उत्तरदायी है / उस के चरित्र का अध्ययन निम्नान्कित बिंदुओँ

के अंतर्गत किया जा सकता है –

1. अहिंसा एवँ उदार व्यक्तित्व :नाटक के प्रारंभ मेँ राजपुरुश दंतुल व्दारा आह्त हरिण शवक को

पुनर्जीवन देने मेँ कालिदास की कोमलता , अहिंसा और उदारता ही परिलक्षित होती है /

2. स्वाभिमानी : उज्जयिनी मेँ राज सम्मान के लिए आव्हान मिलने पर कालिदास मातुल से स्पष्ट शव्दोँ

मेँ जाने से इनकार देते है क्योँ कि कालिदास जानते है कि राजा किस प्रकार कवि को चंद सिक्कोँ के

बल पर अपना दास बना लेते है -

3. प्रक्रुति पुत्र : कालिदास का जीवन प्रकृति के गोद मे पला है /इसी ग्राम प्रकृति ने उन्हेँ इस योग्य

बनाया है कि एक विख़्यात कवि के रूप मेँ राज्य उसे सम्मान देता है / इस लिए वे स्व्य कहता है

कि “ मै अनुभ्व करता हूँ कि ग्राम – प्रांतर मेरी वास्त्विक भूमि है/ मै कई सूत्रोँ से इस भूमि से झुडा

हूँ /’

4. निडर व्यक्ति : कालिदास के चरित्र मेँ निडर व्यक्तित्व नाटक के प्रारंभ मेँ राजपुरुश दंतुल व्दारा

आह्त हरिण शवक को रक्षा करते हुए दन्तुल राजपुरुश होने पर भी उस से प्रताडित करता है /

5. दुर्बल ह्रुदय प्रेमी : कालिदास की दुर्बल हृदय प्रेमी स्वभाव मल्लिका के विषय मेँ दिखाई देती है /

मल्लिका एकनिष्ट भाव से उन्हे अर्पित करती है कालिदास भी शुरू मेँ घोषणा करते है कि

मल्लिका के अतिरिक्त किसी अन्य से विवाह नही करेंगे / लेकिन राजकार्य मेँ उज्जयिनी जाने के

बाद राज मद मेँ मस्त हो जाते है कि उसे राजकन्या प्रियंगुमंजरी से विवाह कर लेता है /


6. असफल राजनेता : कालिदास राज गद्दी पर बैट्ने पर भी राजनैतिक कूटनीति मेँ विफल हो कर

उन्हे काष्मीर का शासनभार छोड कर भागना पडता है /

7. आत्म – केंद्रित व्यक्ति : कालिदास के चरित्र की सर्वाधिक सशक्त अभिव्यक्ति उन के आत्म केंद्रित

रूप मेँ हुई है /नाटक के शुरू मेँ अंबिका कहती है कि – ‘वह व्यक्ति आत्म सीमित है / संसार मेँ

अपने सिवा उसे किसी से मोह नहीँ है /’

इस प्रकार कालिदास को नाटककार ने मानव रूप मेँ चित्रित करके उनके जीवन का मनोवैज्नानिक रूप

का यथार्थ चित्र प्रस्तुत किया है /


मल्लिका का चरित्र चित्रण कीजिए :


आषाढ का एक दिन नाटक मेँ मल्लिका का पात्र सर्वाधिक सशक्त , मार्मिक और प्रभाविक

है / मल्लिका की चरित्र का विशेषताओँ का अध्ययन निम्नाँकित बिंदुओँ के आधार पर किया जा सकता है –

1. पित्रुहीन :मल्लिका को माँ अंबिका का आश्रय ही मिला था और उस के पिता की मृत्यु उस के बचपन मेँ

ही हो गयी थी / इस का परिणाम यह हुआ कि दोनोँ को ही निभाना पड्ता है / माँ की ममता ने उसे

और भी स्वतंत्रता दे रखी है /

2. अल्हाड ग्राम्य – बाला:मल्लिका ग्राम –प्रांतर की कन्य है जिस से चंचलता और अल्हाडता स्वाभाविक रूप

से आगयी है / इस का परिचय मल्लिका योँ कहती है – आषाढ का पहला दिन और एसी वर्षा माँ.....

ऐसी धारा का वर्षा ! दूर दूर तक की उपत्यकाएँ भी गायीँ .... और मै भी तो /

3. कोमल और भावुक तरुणी :तरुणी मल्लिका का चरित्र नितांत कोमल और भावुक है / अपने पहले संवाद

मेँ ही वह आपनी इन विशेषताओँ को व्यक्त कर देती है / कालिदास के साथ जब प्रकृति – विहार करने

गयी थी तो आकाश मेँ छाये बादलोँ को देख कर उस का रोम - रोम पुलकित हो उठा था /

4. हठीला स्वभाव :माता अम्बिका को कालिदास के विषय मेँ जब भी वर्जित् करना चाहती है तो मल्लिका

अपनी हठ का प्रदर्शन करती है / तब माँ अम्बिका से योँ पूछ्ती है कि “कुछ भी कहो / मुझे डाँटो कि

भीँग कर क्योँ आयी हूँ ? या कहो कि तुम थक गयी हो इसलिए शेषदान मै फटक दूँ /

5. स्वाभिमानिनी : मल्लिका अत्यधिक स्वाभिमानिनी है /लोग मल्लिका का रिश्ता तय न होने का कारण

कालिदास और मल्लिका संबंध का आरोप करने से मल्लिका का आहत स्वाभिमान फिर जागृत हो उठ्ता

है और अपनी माँ से कह्ती है – “ क्या कहते है ? क्या अधिकार है उन्हे कुछ भी करने का / मल्लिका

का जीवन उस की अपनी सम्पत्ति है वह उसे नष्ट करना चाहता है तो किसी को उस पर आलोचना करने

का क्या अधिकार है /’

6. अहिंसा एवँ करुणा की प्रतिमूर्ति :मल्लिका के चरित्र मेँ अहिंसा और करुणा का भाव के दर्शन नाट्के

प्रारंभ मेँ ही हो जाते है / कालिदास जब दंतुल व्दारा घायल हिरण शवक को उपचार के लिए मल्लिका के


घर की ओर लाते हुए स्वयं कालिदास हिरण से योँ कह्ता है – “ तुम्हेँ वहँ ले जाता हूँ जहाँ तुम्हे अपनी

माँ की – सी आँखेँ और उस सा ही स्नेह मिलेगा /“

7. एकनिष्ठ प्रेमिका : मल्लिका के चरित्र की सर्वाधिक विशेषता है कि वह निस्वार्थ और एकनिष्ट प्रेमिका

है / कालिदास को राजकार्य मेँ उज्जयिनी जाने से आप को नष्ट होने पर त्यागमय प्रेम का ही प्रदर्शन

करती हुयी उस से कह्ती है कि – ‘जानती हूँ कि तुम्हारे चले जाने पर मेरे अंतर को एक रिक्त्तता

छालेगी और बाहर भी सम्बवत : बहुत सुना प्रतीत होगा /’फिर भी मै ह्रुदय से कहती हूँ कि तुम्हे जाना

चाहिए …. यहाँ ग्राम -प्रांतर मेँ रक कर तुम्हारी प्रतिभा को विकसित होनेका अवकाश कहाँ मिलेगा …

8. प्रेरक व्यक्तित्व : मल्लिका कालिदास की प्रेरणादात्री भी है / उस की प्रेरणा कालिदास को विश्वकवि बना

देती है /स्वयं नाट्ककार ने मल्लिका के बारे मेँ योँ कहाँ है – “मल्लिका का चरित्र एक प्रेयसी और प्रेरक

का ही नही भूमि मेँ रोपित उस स्थिर आस्था का भी है , जो ऊपर से झुलसकर भी अपने मूल मेँ

विरोपित नहीँ होती /” वस्तुत: वह कालिदास को ग्राम – प्रांतर के गर्त से निकाल कर राजकवि के पद

पर प्रतिष्ठित करा देती है /

इस प्रकार मल्लिका का उदात्त प्रेमि , उसकी एकनिष्ठ्ता , अनन्यता ,सात्विक्ता और उदारता प्रस्तुत

नाटक की एक महान उपलब्दि है /

आषाढ का एक दिन नाटक का उध्देश्य क्या है ?


कोई भी नाटककार आपने नाटक को किसी न किसी उध्देश्य को पूर्णता के लिए ही लिखता है / चाहे

उस का उध्देश्य आर्थिक ,यश – प्राप्त का हो अथवा सामाजिक या व्यक्तिगत समस्याओँ को चित्रित

करने का हो / आषाढ का एक दिन नाटक मे लेखक मोहन राकेश जी ने दो उध्देश्योँ की सिध्दि करनी

चाही है/ इस मेँ पहला तो यह कि पुरुश की अहंवादिता, एक आदर्श , निष्टा और त्यागमयी नारी को

करुणा के जिस धरातल पर लाकर छोड देती है कि वह स्वय को वीरंगना के रूप मेँ देख़ने लगती है

/दूसरे उध्देश्य के विषय मेँ नाटककार की यह उक्ति चिंतनीय है – ‘राजाश्रयी सर्जक कलाकार की प्रतिभा

को कुण्टित कर देता है /’ नाट्ककार ने अपने उध्देश्य पूर्ति मेँ व्यक्तिवादी , अस्तित्ववाद और

मनोविश्लेषणवाद कि कई समस्याओँ का भी उल्लेख किया हैँ /


मोहन राकेश


मोहन राकेश का जन्म अमृतसर मेँ 8 फरवरी ,1925 को हुआ था / उन की प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर मेँ

हुई , एम.ए. संस्कृत और एम. ए .हिंदी लाहौर मेँ किया था और बम्बई मेँ एक कालेज मेँ प्राध्यापक

हो गये / कुछ कारण वश नौकरी का त्याग पत्र देकर दिल्ली मेँ स्वतंत्र लेखक बने, इस के उपरांत

‘सारिका’ पत्रिका का प्रधम संपादक बने किंतु वहाँ भी त्याग पत्र दे कर जीवन पर्याँत स्वतन्त्र लेखन मेँ हीँ

रत रहे /यात्रा करने का राकेश को बडा शौक था /मोहन राकेश का व्यक्तित्व किसी के लिए जटिल और

किसी के लिए खुली पुस्तक् था / अचानक हृदय गति रुक जाने से 3 दिसम्बर ,1972 को अपनी जिंदगी

को छोड कर चले गये / राकेश सब से पहले कहानीकार है ,राकेश जी की कहाँनियोँ मेँ जीवन की गहरी

तीव्रता और मार्मिक प्रतिक्रिया परिलक्षित होती है , आप के कहानी संग्राहोँ की सूची इस प्रकार है –

1.इन्सान के खण्डहर (1950) 2. नये बाद्ल (1956)

3. जानवर और जानवर (1958) 4. एक और जिंदगी

(1961)

5. फौलाद का आकाश (1966) 6. आज के साये (1967)

7. मेरी प्रिय कहानियाँ (1971) 8. चेहरे तथा अन्य

कहानियाँ (1972)

आप एक यथार्थवादी उपन्यासकार है , उस की पूरी सूची इस प्रकार है –

1.अंधेरे बंद कमरे (1961) 2. न आनेवाला कल (1968) 3. अन्तराल (1972) और

4. स्याह और सफेद 5. काँपता हुआ दरिया 6 .कई एक अकेले ---- अप्रकाशित है /

एक नाट्ककार के रूप मेँ मोहन राकेश जी को सर्वाधिक सफलता मिली है / उन के कुल

तीन नाट्क है उन मेँ दो ऐतिहासिक और एक युग बोध का है आप के नाटकोँ

की सूची इस प्रकार है ---

1.आषाढ का एक दिन (1958) 2. लहरोँ की राज हँस (1963) 3. आधे अधूरे (1963)


और इस के साथ - साथ परिवेश , रंगमंच और शब्द आदि निबंध ,आत्मकथा ,शकुंतला एक औरत का

चहरा आदि अनुवाद भी लिखे थे / इस प्रकार आप कहानीकार , उपन्यासकार , नाटककार तथा

निबंधकार के रूप मेँ सफल हुए है /

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